: प्रणव : नयी दिल्ली, 14 जून :भाषा: आप उन्हें रेत के मैदान का सचिन तेंदुलकर या रेतीले कैनवास का एम एफ हुसैन कह सकते हैं क्योंकि प्रतिभा के मामले में वह किसी से कम नहीं हैं। एक के बाद एक कई विश्व खिताब अपने नाम करने वाले और हाल ही में डेनमार्क के कोपनहेगन में सैंड स्कल्पचर चैंपियनशिप जीतने वाले विश्व प्रसिद्ध रेत कलाकार सुदर्शन पटनायक का कहना है कि उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार देश में रेत पर कलाकारी की बढ़ती लोकप्रियता है।
कोपनहेगन में दुनिया भर के शीर्ष कलाकारों को पीछे छोड़ते हुए पटनायक ने अपनी कलाकृति ‘सेव द ओशन’ के माध्यम से निर्णायकों और दर्शकों का दिल जीत लिया।
यह पूछे जाने पर कि इस बेजोड़ रचनात्मकता के लिए उन्हें कहां से प्रेरणा मिलती है, उन्होंने कहा, ‘‘भारत की संस्कृति विराट है, उन्हें इसी से प्रेरणा मिलती है। कलाकार को निरंतर कल्पनाशील, मौलिक बने रहना चाहिए, रचनात्मकता फिर खुद ही दिखेगी।’’ पटनायक ने कहा कि वहां बड़ी संख्या में भारतीय दर्शक पहुंचे थे जिन्होंने जमकर उनका उत्साह बढ़ाया। प्रथम पुरस्कार मिलने के बाद राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उन्हें तुरंत बधाई संदेश भेजा, जिससे उनका बहुत उत्साहवर्धन हुआ। उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद नहीं थी देश वापस लौटने पर लोग उनका इतने उत्साह के साथ स्वागत करेंगे।
हालांकि यह पूछे जाने पर कि भारत सरकार की उनकी जीत पर क्या प्रतिक्रया रही, उन्होंने कहा, ‘‘मुझे अभी तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह या संस्कृति मंत्रालय से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। मैं प्रधानमंत्री से मिलना चाहता था और उन्हें अपनी कलाकृति की तस्वीर भेंट करना चाहता था, मैंने इसके लिए संपर्क भी किया लेकिन अभी तक मुझे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। अगर ऐसा होता तो इससे मुझे और ज्यादा प्रोत्साहन मिलता।’’ पटनायक ने अपनी विजयी कलाकृति ‘सेव द ओशन’ के बारे में कहा, ‘‘मैं हमेशा समसामयिक मुद्दों पर संदेश देने की कोशिश करता हूं। इसी तरह यह कलाकृति भी जलवायु परिवर्तन की थीम पर आधारित थी। इसके माध्यम से मैंने जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों, समुद्र जल के स्तर में वृद्धि, समुद्री जीव जंतुओं को हो रही क्षति को लेकर जागरूकता का संदेश देने की कोशिश की’’ 2008 में पहली बार बर्लिन में आयोजित विश्व चैंपियनशिप जीतकर इतिहास रचने वाले पटनायक ने दोबारा कोपनहेगन में विश्व चैंपियनशिप जीती है। इस जीत के साथ उन्होंने बुल्गारिया की राजधानी सोफिया में 15 से 21 जून तक होने वाले ओपन सैंड आर्ट चैंपियनशिप में सीधे जगह बना ली हैं। वह इसमें भाग लेने के लिए कल रवाना हो रहे हैं।
भारत में रेत कलाकारी के इतिहास के बारे में बताते हुए पटनायक ने कहा कि इसका इतिहास बहुत पुराना है। 14वीं सदी में पुरी जगन्नाथ की रथ यात्रा के दौरान महान कवि बलराम दास ने पुरी के तट पर रेत पर कलाकृतियां बनानी शुरू की थीं।
35 वर्षीय कलाकार ने कहा कि रेत पर कलाकारी से बड़ी संख्या में अब लोग जुड़ रहे हैं। सबसे अच्छी बात है कि जहां समुद्र हैं, वहां तो लोगों के बीच यह लोकप्रिय हो ही रही है, लेकिन इलाहाबाद जैसे शहर में जहां समुद्र नहीं है, वहां भी लोगों ने इस तरह की कलाकृतियां बनाना शुरू कर दिया है।
अब तक 50 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके पटनायक की कलाकृतियां कोई न कोई सामाजिक संदेश जरूर देती हैं। उन्होंने एड्स जागरूकता, आतंकवाद, विश्व शांति, जलवायु परिवर्तन एवं लुप्तप्राय वन्य जीव जैसे मुद्दों पर कई कलाकृतियां बनायी हैं।