: मोना पार्थसारथी :
नयी दिल्ली, 28 सितंबर : भाषा : पिछले सात दशक से भी अधिक समय से अपने सुरों का जादू बिखेर रही स्वर कोकिला लता मंगेशकर को मलाल है कि फिल्मों में आने के बाद शास्त्रीय संगीत वह स्टेज पर नहीं गा पाई।आज अपना 83वां जन्मदिन मना रहीं लता को संगीत के अपने सुनहरे और यादगार सफर में वैसे तो कोई अफसोस नहीं है।अपने जीवन और कैरियर से संतुष्ट लता को सिर्फ एक मलाल है कि शास्त्रीय संगीत स्टेज पर गाने का उनका सपना अधूरा रह गया।उन्होंने कहा ,‘‘ यह मेरा सौभाग्य है कि लोग अभी भी मुझे प्यार करते हैं। मुझे भारत रत्न मिला और इतना प्यार मिला जो बहुत कम लोगों को नसीब होता है। मेरे मन में बहुत शांति है लेकिन इंसान कभी संतुष्ट नहीं रहता। मुझे एक ही अफसोस है कि फिल्मों में आने के बाद मैं शास्त्रीय संगीत को समय नहीं दे सकी।’’ उन्होंने कहा ,‘‘ मेरी ख्वाहिश थी स्टेज पर शास्त्रीय संगीत गाने की लेकिन समय के अभाव में वह पूरी नहीं हो सकी।लेकिन फिर मुझे फिल्मों में गाकर लोगों का इतना प्यार मिला कि अब कोई गिला नहीं ।’’ लता ने संगीत के अपने सफर की शुरूआत शास्त्रीय संगीत से ही की थी । उन्होंने 1945 में मुंबई में बसने के बाद उस्ताद अमानत अली खान से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम लेना शुरू की लेकिन 1947 में भारत विभाजन के बाद उनके उस्ताद पाकिस्तान चले गए । इसके बाद लता ने अमानत खान देवासवाले और उस्ताद बड़े गुलाम अली खान के शिष्य पंडित तुलसीदास शर्मा से भी शास्त्रीय संगीत सीखा । लता को 1948 में संगीतकार गुलाम हैदर ने अपनी फिल्म ‘मजबूर : में एक गीत ‘दिल मेरा तोड़ा’ दिया और उसके बाद से पाश्र्वगायन में उनके कैरियर की औपचारिक शुरूआत हो गई । इसके अगले साल फिल्म ‘महल’ में मधुबाला पर फिल्माया उनका गीत ‘आयेगा आनेवाला’ इतना हिट हुआ कि संगीतकारों की कतार उनके लिये लगने लगी।लता ने संगीतकार नौशाद के लिये बैजू बावरा, कोहिनूर और मुगले आजम में रागों पर आधारित कई गीत गाये।- संपादकीय सहयोग अतनु दास -